‫بالِ جبریل · حصہ اول
لا 
پھر 
اک 
بار 
وہی 
بادہ 
و 
جام 
اے 
ساقی 
ہاتھ 
آ 
جائے 
مجھے 
میرا 
مقام 
اے 
ساقی! 
Set out once more that cup that wine, oh Saki! Let my true place at last be mine, oh Saki!
تین 
سو 
سال 
سے 
ہیں 
ہند 
کے 
میخانے 
بند 
اب 
مناسب 
ہے 
ترا 
فیض 
ہو 
عام 
اے 
ساقی 
Three centuries India’s wine-shops have been closed, and now for your largesse we pine, oh Saki!
مری 
مینائے 
غزل 
میں 
تھی 
ذرا 
سی 
باقی 
شیخ 
کہتا 
ہے 
کہ 
ہے 
یہ 
بھی 
حرام 
اے 
ساقی 
My flask of poetry held the last few drops; unlawful, says our crabb’d devine, oh Saki.
شیر 
مردوں 
سے 
ہوا 
بیشہء 
تحقیق 
تہی 
رہ 
گئے 
صوفی 
و 
ملا 
کے 
غلام 
اے 
ساقی 
بيشہء تحقيق تہي: تحقیق کا جنگل (شیر سے) خالی ہوا۔
Truth’s forest hides no lion-hearts now: Men grovel before the priest, or the saint’s shrine, oh Saki.
عشق 
کی 
تیغ 
جگردار 
اڑا 
لی 
کس 
نے 
علم 
کے 
ہاتھ 
میں 
خالی 
ہے 
نیام 
اے 
ساقی 
تيغ جگردار: تلوار جس کی کاٹ بے پناہ ہو۔
Who has borne off Love’s valiant sword? About an empty scabbard Wisdom’s hands twine, oh Saki.
سینہ 
روشن 
ہو 
تو 
ہے 
سوز 
سخن 
عین 
حیات 
ہو 
نہ 
روشن، 
تو 
سخن 
مرگ 
دوام 
اے 
ساقی 
Verse lights up life, while heart burns bright, but fades for ever when those rays decline, oh Saki!
تو 
مری 
رات 
کو 
مہتاب 
سے 
محروم 
نہ 
رکھ 
ترے 
پیمانے 
میں 
ہے 
ماہ 
تمام 
اے 
ساقی! 
Bereave not of its moon my night; I see a full moon in your goblet shine, oh Saki!
English Translation by: V.G. Kiernan
بالِ جبریل > حصہ اول
مٹا دیا مرے ساقی نے عالم من و تو